इस आयोजन का केंद्रबिंदु होता है मुझे महाराज, जिनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कैसे होती है परंपरा की शुरुआत? समाज के वरिष्ठ सदस्य सुधाकर महाजन बताते हैं कि बसंत पंचमी के दिन सुबह से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। समाज के पुरुष पारंपरिक तरीके से साड़ी पहनते हैं और सिर पर रुमाल बांधते हैं। इसके बाद मुझे महाराज की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जो रास्तीपुरा से होते हुए ताप्ती नदी के राजघाट पर पहुंचती है।
शोभायात्रा में शामिल समाजजन नाचते-गाते हुए नदी तक जाते हैं। वहां पहुंचकर मुझे महाराज का विधिपूर्वक स्नान करवाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद सभी समाजजन अपने घरों में रिश्तेदारों और कुटुंब के लोगों को आमंत्रित कर सामूहिक भोजन करवाते हैं।
500 वर्षों से निभाई जा रही परंपरा समाज के वरिष्ठ लोगों का कहना है कि यह परंपरा करीब 500 वर्षों से चली आ रही है।
समाज के कुल देवता को चांदी के मुझे महाराज के रूप में तैयार किया जाता है। इन्हें सोनार के पास से लाकर पूरे विधि-विधान से पूजा जाता है। इस आयोजन की खास बात यह है कि न केवल बुरहानपुर बल्कि महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में समाजजन इसमें शामिल होते हैं। यह परंपरा न केवल माली समाज की धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाती है।