नागरिकता संशोधन कानून (CAA)
* केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 यानी सीएए के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। इसके साथ ही सीएए आज 11 मार्च 2024 से देशभर में लागू हो गया है।
* CAA को नागरिकता संशोधन कानून कहा जाता है। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
* नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 एक ऐसा कानून है, जिसके तहत दिसंबर 2014 से पहले तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले छह धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को नागरिकता दी जाएगी।
* नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019, दिसंबर 2019 में संसद में पारित किया गया। इसके बाद राष्ट्रपति से सीएए कानून को मंजूरी मिल गई थी। हालांकि राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद देश के विभिन्न राज्यों में सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया गया।
* गृह मंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर को इसे लोकसभा में पेश किया था। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) संसद में 11 दिसंबर 2019 को पारित किया गया था। सीएए के पक्ष में 125 वोट पड़े थे और 105 वोट इसके खिलाफ गए थे। 12 दिसंबर 2019 को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी।
* वर्ष 2016 में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (सीएए) पेश किया गया था। इसमें 1955 के कानून में बदलाव किया जाना था। जिसमें भारत के तीन पड़ोसी देश बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देना था। अगस्त 2016 में इसे संयुक्त संसदीय कमेटी को भेजा गया और कमेटी ने 7 जनवरी 2019 को इसकी रिपोर्ट सौंपी थी।
* केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद कहा था कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं है उन्होंने कहा कि यदि देश का विभाजन न हुआ होता और धर्म के आधार पर न हुआ होता तो आज यह विधेयक लेकर आने की कोई जरूरत नहीं पड़ती
* इस विधेयक को कानून का रूप लेने से पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के वजह से वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को नागरिकता (संशोधन) विधेयक के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी
* भारतीय नागरिकता लेने हेतु अभी 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है नए विधेयक में प्रावधान है कि पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक यदि पांच साल से भी भारत में रहे हों तो उन्हें नागरिकता दी जा सकती है
* इस संशोधन के तहत ऐसे अवैध प्रवासियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, वे भारतीय नागरिकता हेतु सरकार के पास आवेदन कर सकेंगे
* नए विधेयक के तहत यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता हेतु उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी
* नागरिकता (संशोधन) बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने हेतु पेश किया गया है इसमें बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के शरणार्थियों हेतु नागरिकता के नियमों को आसान बनाना है
* इस बिल संशोधन का मुख्य उद्देश्य चुनिंदा श्रेणियों में अवैध प्रवासियों को छूट देना है इससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा
* पिछले विधेयक से कैसे अलग नया कानून
> 2016 के विधेयक में 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष किया गया
> नए कानून में इसे घटाकर पांच वर्ष कर दिया गया है
> छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों को छूट देने का बिंदु भी पिछले विधेयक में नहीं था
> अवैध प्रवास के संबंध में सभी कानूनी कार्यवाही बंद करने का प्रावधान भी नया है
* सीएए के नियम पहले से ही तैयार कर लिए गए थे और इसके लिए आवेदन की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन रखी गई है। आवेदन के लिए आवेदक को किसी अतिरिक्त दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी। आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन रहेगी। आवेदकों को बताना होगा कि वे भारत कब आए।
* गृह मंत्रालय की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 के बीच पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के 1414 व्यक्तियों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत पंजीकरण या प्राकृतिककरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।
* नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 से भारतीय नागरिकों का कोई सरोकार नहीं है। संविधान के तहत भारतीयों को नागरिकता का अधिकार है। सीएए कानून भारतीय नागरिकता को नहीं छीन सकता।
* विधेयक को लेकर विपक्षी दल सबसे ज्यादा विरोध कर रहे है विपक्षी दल का कहना यह है कि इसमें मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है उनका कहना यह भी है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है
* पूर्वोत्तर के कई राज्यों का कहना है कि अभी भी बड़ी संख्या में उनके राज्य या इलाके में इस समुदाय के लोग ठहरे हुए हैं, अगर अब उन्हें नागरिकता मिलती है तो वह स्थाई हो जाएंगे. इससे उनकी संस्कृति, भाषा, खानपान और अन्य पहचान को खतरा पैदा हो जायेगा।