* भारत सरकार ने कृषि वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान किया है
* प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने कभी इस कहावत का जिक्र किया था कि ‘हम वही काटते हैं जो हम बोते हैं’ और इसलिए सही चीजें बोना बहुत जरूरी है।
* उन्होंने कहा था, 'चूंकि मैं कृषि पर काम कर रहा था, मेरा परिवार चाहता था कि मैं अपने बागानों का प्रबंधन संभालूं। लेकिन मेरा लक्ष्य नई किस्मों को विकसित करने में महारत हासिल करना था।’
* दोस्तों और सहकर्मियों की तरफ से एम.एस. के नाम से पुकारे जाने वाले मोनकोम्बु संबाशिवन (एम.एस.) स्वामीनाथन ने अपने लंबे करियर में जो कुछ कहा, उसे कर दिखाया और किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर जबरदस्त पैदावार सुनिश्चित की।
* तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त, 1925 को डॉ. एम. के. संबाशिवन और पार्वती थंगम्मई के घर जन्मे स्वामीनाथन ने उस समय कृषि क्षेत्र की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब किसान पुरानी कृषि पद्धति पर निर्भर थे।
* स्वामीनाथन उस युग से ताल्लुक रखते थे, जब देश के कई हिस्सों में भूख और कुपोषण आम बात थी और लगभग 30 करोड़ की आबादी वाला देश आजादी हासिल करने के करीब था
* बंगाल के अकाल (1943-44) ने न केवल लोगों को परेशान किया, बल्कि स्वामीनाथन के करियर को भी बहुत प्रभावित किया। इसने उन्हें खाद्य सुरक्षा और फिर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने पर अपना लक्ष्य निर्धारित करने के लिए मजबूर किया।
* पादप आनुवंशिकीविद् के रूप में शुरू हुए स्वामीनाथन के शोध ने खाद्य असुरक्षा के मुद्दे का समाधान किया, जिससे छोटे किसानों को उत्पादकता बढ़ाकर अपनी आय बढ़ाने में मदद मिली।
* आख़िरकार, एक राष्ट्र जो 1960 के दशक में अपने लोगों का भरण-पोषण करने के लिए अमेरिकी गेहूं पर निर्भर था, वह अपनी जरूरत से अधिक खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले राष्ट्र के रूप में तब्दील हो गया।
* उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए, उन्हें पद्म विभूषण और प्रतिष्ठित रेमन मैगसायसाय पुरस्कार सहित कई शैक्षणिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
* भारतीय किसानों ने बहुत अच्छे मानसून में उपजाये गये 1.2 करोड़ टन गेहूं के मुकाबले 1968 में, यह अनाज 1.7 करोड़ टन उपजाया। अतिरिक्त 50 लाख टन की पैदावार वास्तव में एक लंबी छलांग थी।
* यह ‘गेहूं क्रांति’ बन गई और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जुलाई 1968 में एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
* स्वामीनाथन को गेहूं के अलावा, धान और आलू की उपज बढ़ाने में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने खेतीबारी में नवीन तकनीकों को अपनाकर कृषि अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
* करेंट साइंस (लिविंग लेजेंड्स इन इंडियन साइंस) में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार, उन्होंने 1949 में कृषि विश्वविद्यालय, वैगनिंगन, नीदरलैंड और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आलू के ‘साइटोजेनेटिक’ अध्ययन के साथ अपना शोध करियर शुरू किया, जहां उन्होंने 1952 में जेनेटिक्स में पीएचडी हासिल की।
* स्वामीनाथन ने 1987 में प्राप्त प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार की राशि से एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना की थी
* स्वामीनाथन ने एक बार कहा था कि पोषण सुरक्षा में अल्पपोषण, प्रोटीन की जरूरत, और आयरन, आयोडीन, जस्ता, विटामिन ए तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों के अपर्याप्त उपभोग से उत्पन्न होने वाली छिपी हुई भूख पर भी साथ-साथ ध्यान देना शामिल है। वह अल्पपोषण और कुपोषण को खत्म करने के लिए भी प्रतिबद्ध थे।
* भारत में हरित क्रांति का विस्तार करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और लाखों लोगों की आजीविका में सुधार के लिए उन्हें विश्व के प्रथम खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
* उन्हें दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से 84 मानद डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करने के अलावा प्रतिष्ठित पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्त हुए।
* वह 2007-13 के दौरान राज्यसभा सदस्य थे और 2010-13 में, उन्होंने खाद्य सुरक्षा पर विश्व समिति (सीएफएस) के विशेषज्ञों के उच्च स्तरीय पैनल की अध्यक्षता की।
* अपने फाउंडेशन के माध्यम से, उन्होंने छह लाख से अधिक कृषक परिवारों के जीवन में बदलाव लाया।
* उनके परिवार में तीन बेटियां हैं। उनकी एक बेटी डॉ. सौम्या स्वामीनाथन विश्व स्वास्थ्य संगठन की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक हैं।
* मधुरा स्वामीनाथन और नित्या राव उनकी अन्य दो बेटियां हैं।
* उनकी पत्नी मीना स्वामीनाथन का पहले ही निधन हो चुका है
* एम. एस. स्वामीनाथन ने 28 सितंबर 2023 को आखिरी सांस ली