कन्या पूजा का महत्व आखिर क्या है ? क्यों छोटी छोटी कन्याओं को देवी की तरह पूजा जाता है? क्या है नियम ?


हिंदू धर्म में नवरात्रों की बहुत मान्यता है. ऐसे में आज अष्टमी का दिन है. जहां हर तरफ छोटी-छोटी बच्चियों की चहल-पहल देखने को मिल रही है. बता दें, इस दिन छोटी-छोटी कन्याओं को घर-घर बुलाकर भोजन कराया जाता है.

भोजन में हलवा-पूड़ी चने खिलाए जाते हैं. ये सब होगा कल भी क्योंकि कल नवमी है. ये तो कई लोग ये नहीं जानते कि इस कन्या पूजा का महत्व आखिर क्या है. तो चलिए हम बता देते हैं कि आखिर नवरात्रों के दिनों में कन्या पूजा का महत्व क्या है क्यों छोटी-छोटी कन्याओं को देवी मां की तरह पूजा जाता है.
सबसे पहले आपको बता देते हैं कि आखिर कन्या पूजन होता क्यों है. तो ये माना जाता है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार देवराज इंद्र ने ब्रह्मा इंद्र से भगवती देवी को प्रसन्न करने का उपाय पूछा था. तो ब्रह्मा जी ने देवी को प्रसन्न करने का उपाय कुमारी पूजन बताया था. इसलिए तभी से नवरात्रों में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है. जिससे घर में सुख शांति आती है. इसके साथ ही ये जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर कन्या पूजन के दौरान किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए.
तो ये तो सभी को पता है कि नवरात्रि के व्रत कन्या पूजन करने के बाद ही पूरे माने जाते हैं. कहा जाता है कि अगर किसी ने नवरात्र के व्रत रखे है वो आखिरी में कन्या भोजन न कराएं. तो उसकी पूजा सफल नहीं होती. लेकिन, इसे करने से पहले भी कुछ नियमों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.
कन्या पूजन में केवल 2 साल से 10 साल तक की उम्र की कन्याओं को ही बैठाना चाहिए साथ में एक छोटे-से लड़के को भी लांगुरा के रूप में बैठाना चाहिए क्योंकि लड़के को भैरव बाबा का रूप माना जाता है. 

वैसे तो नवरात्रि में कन्‍या भोजन के लिए 9 को सही संख्‍या माना जाता है. लेकिन, लोग अपने अनुसार इस संख्या को कम या ज्यादा कर लेते हैं. जो कि गलत नहीं है. 

अब, 9 कन्याएं ही क्यों. इसकी भी वजह बता देते हैं. इसकी वजह ये है कि 9 कन्याओं की देवी के 9 रूप मानकर पूजा की जाती है. साथ ही कन्या पूजन के दौरान उन्हें टीका लगाकर हाथों में रक्षा धागा जरूर बांधना चाहिए. उसके बाद उन्हें या तो उपहार या दक्षिणा देनी चाहिए. आखिरी में उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए.