बुरहानपुर - विश्व मे प्रसिद्ध पूरे हिंदुस्तान हिंद के बादशाह ख्वाजा गरीब नवाज का 810वा उर्स मुबारक पूरे विश्व में शहर गली मोहल्लों में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बड़ी धूमधाम हर्षोल्लास के साथ मनाया बुरहानपुर शहर में भी इस दीन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने घरों में कुरान की तिलावत का दौर किया इस्सा साले सवाब के लिए ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से शहर के चौराहा गली मोहल्लों में मगरिब की नमाज के बाद लंगर का आयोजन रखा लंगर के आयोजन में सभी धर्म के लोगों ने अमीर गरीब लोगों ने लंगर खाया ख्वाजा ग़रीब नवाज़ का 810 वां उर्स मुबारक हर साल की तरह इस साल भी परंपरानुसार मनाया उर्स के दौरान कोरोना गाइडलाइन के नियमों को देखते हुए बनाया ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह सदियों से सर्वपंथ समभाव का केंद्र बनी हुई है यहां बादशाहों से लेकर फकीर तक हाजिरी देते हैं लोग खाली झोली लेकर आते हैं बाद में मुरादें पूरी होने पर हाजिरी देते हैं यह सिलसिला बदस्तूर जारी है आठ सौ साल से सूफियत का पैगाम भारत में सूफियत की शुरुआत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती से मानी जाती है ख्वाजा साहब 11 वीं सदी में अजमेर आए थे ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में प्रतिवर्ष एक से छह रजब तक सालाना उर्स मनाया जाता है यह सिल सिला पिछले 800 साल से जारी है छह दिन का उर्स मनाने के पीछे यह तर्क है कि ख्वाजा साहब खुदा की इबादत में रहे थे इस दौरान ही उन्होंने दुनिया से पर्दा लिया था
पूरी होती हैं मुरादें:-›आम से खास तक आतें मुरादें लेकर ख्वाजा साहब की दरगाह में हजारों जायरीन मुरादें लेकर आते हैं इनमें से कई मुरादें पूरी होने पर वापस शुकराना अदा करने आते हैं दरगाह आने वाली खास शख्सियतों में मुगल बादशाह अकबर,जहांगीर, बेगम नूरजहां, शाहजहां, निजाम हैदराबाद और अन्य शामिल हैं इनके अलावा आजादी के बाद देश के कई प्रधानमंत्री,केबिनेट और राज्यमंत्री,प्रदेशों के सीएम पाकिस्तान के पीएम,बांग्लादेश के पीएम और अन्य देशों के राजनेता आते रहे हैं
जन्नती दरवाजे पर बांधते अर्जियां :-›ख्वाजा साहब की मजार के निकट ही जन्नती दरवाजा बना है प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार इस दरवाजे से प्रवेश करने पर जन्नत नसीब होती है यह दरवाजा ख्वाजा साहब के सालाना उर्स ख्वाजा साहब के गुरू उस्मान हारूनी के उर्स ईद और कुछ मौकों पर ही खुलता है इस दरवाजे से प्रवेश करने के लिए जायरीन में जबरदस्त होड़ मचती है दरवाजा बंद रहने की स्थिति में लोग अपनी दुख-तकलीफ या किसी विशेष प्रयोजन को अर्जियों में लिख कर यहां मन्नत का धागा बांधते हैं ऐसी मान्यता है कि ख्वाजा साहब उनकी अर्जियों को कबूल करते हैं बाद में लोग शुकराने अदा करने और मन्नत का धागा खोलने वापस आते हैं