अंतर्राष्ट्रीय मैन दिवस 19 नवंबर........ दिवस विशेष

International Men's Day

क्या मर्द को कभी दर्द नहीं होता?

एक कंधे पर बोझ बहुत दिखता है। 
फीका फीका सा चेहरा पर आंखों में तेज बहुत दिखता है।
कंधा मजबूत और दिल नाजुक सा लिए फिरता है।
सबकी उम्मीदों पर यह खरा उतरता है।
कभी मां का लाडला तो कभी जोरू का गुलाम कहलाता है।
यह मर्द बेवजह चक्की में पीसा जाता है।
सुबह शाम का कभी होश नहीं रहता है दिल चाहे कितना भी बेचैन हो इनकी आंखों में कोई देख नहीं सकता है।
क्या है इन्हें यह किसी से कहते ही नहीं जुवा पर कड़वाहट जितनी ज्यादा होती है,दिल का दर्द उतना ही गहरा होता है।
इन्हें भी पसंद है, ढलती शाम के साथ ढल जाना किसी की गोद में सिर रख कर सो जाना।
कोई प्यार से गले इन्हें भी लगा ले आज तुम ऑफिस मत जाओ यह कहकर अपने पास बैठा ले।
बड़े सिमटे से लगते हैं बड़े सुलझे से लगते हैं यह आदमी कितने अजीब है ना हजार ख्वाहिशों को मार कर भी जिंदा से लगते है।
रूठे तो यह खुद ही होते हैं और उल्टा दूसरों को मनाने लगते हैं।
दिल इनका भी मॉम का है बस यह पत्थर दिल बनकर रहते हैं।
और दिखावे की तो खूब दाद देनी पड़ेगी इनकी कभी हाल पूछ लो तो हाँ, मैं ठीक हूं मजे में हूं, कहकर बात टाल देते है।
जिस्म क्या लोहे का है उनका बदन चाहे बुखार से तप रहा हो फिक्र कभी होती नहीं उन्हें अपनी, निकल पड़ते हैं कमाने अपने हिस्से का आराम जो कभी इन्हें मिलता ही नहीं।
और हां एक सबसे महत्वपूर्ण बात एक जिस्म में कई  किरदार निभाते हैं। यह कभी भाई, कभी पिता, तो कभी हमसफर कहलाते हैं। यह कितनी अजीब बात है ना, जिम्मेदारियों की बेड़ियों में गैर जिम्मेदार इंसान का चोला पहने नजर आते है।