शिवलिंग के सामने बैठे नंदी के कान में क्यों बोली जाती है मनोकामना ? : जानिए इसके पीछे का रहस्य

जब भी हम किसी शिव मंदिर जाते हैं तो अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा के पीछे की वजह एक मान्यता है। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है..

नंदी चैतन्यता का प्रतीक

वे बंद आंखों से भी संपूर्ण जगत के संचालन में सहयोग करते हैं जबकि नंदी चैतन्यता का प्रतीक है जो खुली आंखों और खुले कान से व्यक्त-अव्यक्त बातों का भान करता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव की तपस्या में किसी प्रकार का विघ्न न पड़े इसलिए नंदी चैतन्य अवस्था में उनके तपोस्थल के बाहर तैनात रहते हैं। जो भी भक्त भगवान शिव के पास अपनी समस्या लेकर आता है नंदी उन्हें वहीं रोक लेते हैं। किसी बाहरी विघ्न से शिवजी की तपस्या भंग ना हो इसलिए भक्त भी अपनी बात नंदी के कान में कह देते हैं और शिव के तपस्या से बाहर आने पर नंदी उन्हें भक्तों की सारी बातें जस की तस बता देते हैं। भक्तों को यह भी विश्वास रहता है कि नंदी उनकी बात शिवजी तक पहुंचाने में कोई भेदभाव नहीं करते और वे शिवजी के प्रमुख गण हैं इसलिए शिवजी भी उनकी बात अवश्य मानते हैं।


शिव के ही अवतार हैं नंदी

शिलाद नाम के एक मुनि थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव की प्रसन्न कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र मांगा। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को ये वरदान दे दिया। एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे, उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी महादेव की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? ऐसा कहकर भगवान शिव ने नंदी का अपना गणाध्यक्ष भी बनाया।