आषाढ़ी एकादशी के दिन से चार माह के लिए भगवान विष्णु योगनिंद्रा में सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन रहता है। इस अवधि में भगवान शिव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं और चार मास तक संसार की गतिविधियों का संचालन करते हैं। शिव का माह श्रावण माह ही चातुर्मास का प्रथम माह है।
देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सो जाएंगे। जब भगवान शिव सो जाते हैं तो उस उस दिन को शिव श्यानोत्सव के नाम से जाना जाता है। तब वह अपने दूसरे रूप रुद्रावतार से सृष्टि का संचालन करते हैं। भगवान रुद्र की स्तुति ऋग्वेद में बलवान में अधिक बलवान कहकर कहकर की गई है।
मान्यता है कि सृष्टि का कार्यभार देखने के लिए भगावन शिव माता पार्वती, गणेशजी, कार्तिकेय और नंदी आदि गणों के साथ कनखल आकर रहते हैं।
यहीं भगवान शिव और माता सति का विवाह हुआ था, इसलिए इसे भगवान शिव की ससुराल माना जाता है। भगवान ब्रह्मा का भी इस नगरी से सीधा रिश्ता रहा है क्योंकि दक्ष प्रजापति वास्तव मे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे।
जन प्रचलित मान्यता के अनुसार वे हरिद्वार के पास कनखल में राजा दक्ष के मंदिर में आकर रहते हैं।
दक्ष मंदिर वही स्थान है, जहां दक्ष प्रजापति ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा था। यहीं पर दक्ष प्रजापति ने माता सती को भगवान शिव के बारे में बुरा-भला कहा था, जिससे क्रोधित होकर माता सति ने कुंड में कूदकर प्राण त्याग कर दिए थे। तब भगवान शिव के गौत्र रूप वीरभद्र ने अपने ससुर दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया था। तब देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाकर पुनर्जीवन दिया था।
इसी घटना की याद में यहां पर दक्षेश्वर मदिर बना हुआ है।
दक्ष ने भगवान शिव से अपने अंहकार के लिए क्षमा मांगी और वचन लिया कि आप अपने परिवार समेत हर वर्ष सावन मास में यहां आया करेंगे और हमको अपनी सेवा का अवसर देंगे। तभी से हर साल सावन में भगवान शिव इस मंदिर में रखकर ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। सावन में शिव के यहां आने से इस मंदिर का महत्व बढ़ जाता है।
दक्ष महादेव मंदिर के पास ही गंगा के किनारे पर दक्षा घाट है, सावन में यहां शिवभक्त गंगा में स्नान कर भगवान महादेव के दर्शन करते हैं।
कनखल हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थान है। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह स्थान हरिद्वार से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में कनखल हरिद्वार की उपनगरी के रूप में जाना जाता है।
कनखनल राजा दक्ष की के राज्य की राजधानी थी। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भी है।
हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के 5 छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है।
कनखलन में रुईया धर्मशाला, सती कुंड, हरिहर आश्रम, श्रीयंत्र मंदिर, दक्ष महादेव मंदिर, गंगा घाट और उनका मंदिर, शीतला माता मंदिर, दश महाविद्या मंदिर, ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर, हवेली सदृश अखाड़े और कनखल की संस्कृत पाठशालाएं।