पुण्यतिथि विशेष - दादा भाई नौरोजी...धर्म और जाति से परे एक भारतीय

भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले दादा भाई नौरोजी कहा करते थे कि कि “मैं धर्म और जाति से परे एक भारतीय हूं.” वह कहा करते थे कि ‘जब एक शब्द से काम चल जाए तो दो शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए’.

गोपाल कृष्ण गोखले और मोहनदास कर्मचंद गांधी के परामर्शदाता दादाभाई नौरोजी ना सिर्फ भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन के तौर पर जाने जाते हैं, बल्कि वह पहले ऐसे एशियाई व्यक्ति भी थे जिन्हें ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसद चुना गया था. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे.

ब्रिटिशों के समक्ष भारतीयों का दृष्टिकोण रखने के लिए दादाभाई नौरोजी ने वर्ष 1867 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठन ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की. 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से कुछ समय पहले ही सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने समान उद्देश्य वाले संगठन इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की. जब कांग्रेस और इंडियन नेशनल एसोसिएशन का विलय किया गया तब 1886 में दादाभाई नौरोजी को उसका अध्यक्ष चयनित किया गया.

दादाभाई नौरोजी भारतीय इतिहास में एक ऐसे नाम हैं जिसने परंपरागत सोच से अलग भारतीयों को प्रयोगवादी बनने के लिए प्रेरित किया. जिस समय लोग ब्रिटिशों से दूर भागने का प्रयत्न कर रहे थे उस समय दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिशों के देश में जाकर एक भारतीय होने के बावजूद अपना एक अलग स्थान बनाया. अध्यापन कार्य हो या फिर कोई राजनैतिक योगदान, दादाभाई के सभी कार्य दूरगामी प्रभाव छोड़ते थे. आज भी मुंबई, पाकिस्तान और यहां तक कि लंदन में भी विरासत के रूप में दादाभाई नौरोजी के नाम पर सड़कों का निर्माण किया गया है.

दादा भाई नौरोजी की एक बात को कभी नहीं भुलाया जा सकता है कि दादाभाई ने कहा था कि "हम दया की भीख नहीं मांगते, हम केवल न्याय चाहते हैं.”