बुरहानपुर - यह बादशाह शाहजहां की चहेती बहू, उनके बेटे शाहशुजा की पत्नी बेगम बिल्किस बानो का मकबरा है।
सन् 1636 में उनकी मौत के बाद शाहजहां ने उनकी याद में इस मकबरे की तामीर की।
शहजादा शाह शुजा बादशाह शाहजहां का दूसरा बेटा था और वह बंगाल में ढाका का सूबेदार था। अत्यंत सुंदर मकबरा जिसका बेस कमल के फूलों की पंखुड़ी के समान बना हुआ है एवं उसके ऊपर बना हुआ मकबरे का गुम्बद खरबूजानुमा दृष्टिगत होता है।
इस मकबरे की बनावट अत्यंत अनोखी है दूसरे मकबरों को आप देखेंगे तो वह स्क्वायर मिलेंगे (चौकोर मिलेंगे) किंतु यह मकबरा गोल बना हुआ है गुंबद के बगल में जो छोटे छोटे डोम और छोटी छोटी मीनारें बनी हुई है उन पर जो कार्य किया गया है वह अत्यंत सुंदर है।
दीवारों की गोलाईयों के बीच में बने हुए गोल कॉलम ऐसे लगता है कि जैसे खरबूज की फांके हो; इसे खरबूजा बाद का मकबरा भी कहते हैं।
बेगम शाहशुजा के नाम से प्रसिद्ध यह मकबरा जिसमें बहुत ही सुंदर फ्रेस्कोस इन टेंपुरा पेटर्न (अर्थात रंगों के संयोजन में नक्काशी) पेटिंग्स देखने को मिलती है।
आगरा के किले में भी ऐसा ही रंग संयोजन देखने को मिलता है।
जब आप इसे निहारेंगे तो ऐसा लगेगा कि लगभग 370 वर्ष पुरानी यह पेंटिंग तो आजकल की है।
बहुत ही सुंदर बेल बूटे विभिन्न रंगों का संयोजन आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक का मन मोह लेता है और वह बरबस फोटो खींचने की झड़ी लगा देता है।